सारे मानक टूट गए
सारे मानक टूट गए,
मर्यादा के धागे रूठ गए
देव खड़े अदालत में,
विषवमन को तुच्छ तभी जुट गए।
कलियुग की भ्रांति हो
या द्वापर की क्रांति हो
कपट कुरोग कुशासन के
विषाणु मन में घुल रहे।
चौसर की बाजी हो या
शर्तो की पतंगबाजी हो,
घर की लज्जा दांव में
निंद्रा कब पतंगी छांव में,
सहज सिद्धांतो को भूल गए?
सारे मानक टूट गए
मर्यादा के धागा टूट गए।।
- ध्यानश्री शैलेश
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